रावण के सीता माता के अपहरण को हमने देखा तो सोचा कितना अन्यायपूर्ण कार्य किया.. और फ़िर जब राम ने रावण को जीता तो हमें लगा कुछ न्याय हुआ। पाण्डवो ने कौरवो से लङाई करी न्याय के लिये।
हमें अपने भविष्य को लेकर भय चिन्ता होता होती है, क्योंकि हम सोचते हैं – क्या पता अगर मेरे साथ अन्याय हो जाये। क्या पता अगर वो ऐसा कर दे, या ऐसा कह दे।
किसी को देखके उसके कार्य पर खेद होता है, कभी वो गुस्से में भी परिवर्तित हो जाता है जब हमें दूसरे का बर्ताव न्यायोचित नहीं लगता।
दुनिया की सारी लङाइयां न्याय प्राप्त करने के लिये हुई हैं। और भविष्य में अगर न्याय ना मिला – ऐसी कल्पना करके डर भी हुआ। और न्याय ना मिल पाने पर शोक भी हुआ। और दूसरे ने न्याय नहीं किया ऐसा जानने पर क्रोध भी हुआ।
कितना संघर्ष कषायो का – क्रोध का, डर का, शोक का, क्रोध आदि का.. हमने न्याय की खोज में कर डाला।
मगर दुनिया में तो सब कुछ न्याय से ही भरा था। न्याय को अन्याय देखना मेरी ही कल्पना थी। स्वसंचालित कर्म व्यवस्था को अनदेखा कर मैं न्याय को अन्याय देखता रहा।
Friday, September 27, 2019
Subscribe to:
Posts (Atom)
सुख के लिये क्या क्या करता है।
संसारी जीव: सोचता है विषयो से सुख मिलेगा, तो उसके लिये धन कमाता है। विषयो को भोगता है। मगर मरण के साथ सब अलग हो जाता है। और पाप का बन्ध ओर ...
-
रत्नकरण्ड श्रावकाचार Question/Answer : अध्याय १ : सम्यकदर्शन अधिकार प्रश्न : महावीर भगवान कौन सी लक्ष्मी से संयुक्त है...
-
सहजानन्द वर्णी जी सहज चिन्तन, सहज परिक्षा, करे सहज आनन्द, सहज ध्यान, सहज सुख, ऐसे सहजानन्द। न्याय ज्ञान, अनुयोग ज्ञान, अरू संस्कृत व्या...
-
The overview of 8 anga is at: http://www.jainpushp.org /munishriji/ss-3-samyagsarshan .htm What is Nishchaya Anga, and what is vyavhaar: whi...