शरीर में १ साल से कैंसर था, और आज पता पङा कि चौथी
स्टेज का है। आज तक मालूम ही ना था कि मेरे को कैंसर है। अभी तक वो कैंसर शरीर का
अंग था.. ’मेरा अपना था’... और आज अचानक से ही विजातिय हो गया.. शत्रु हो गया..
कैसे बाहर निकले.. ऐसा हो गया। था पहले भी, और अभी भी है। पहले भी शरीर का अंश था,
अभी भी शरीर का अंश है। पहले भी विकार था, अभी भी विकार है। मगर पहले मालूम नहीं
था, और इसलिये मेरा अपना था.. और अब पराया है.. कैसे बाहर निकले.. ऐसा है।
ऐसे ही ये राग हैं.. विचार हैं.. ये अभी तक
मेरे थे.. मेरे व्यक्तित्व के हिस्से थे। अनादि काल से। मगर अब समझ आया कि.. कि ये ये विजातिय हैं.. विकार हैं.. विभाव हैं.. मल
हैं.. अशुद्धि हैं।
...और मेरा इनसे सम्बन्ध बदल गया।
पहले ये मेरी शोभा थे.. अब ये मेरे अन्दर मैल।
पहले मैं इन्हे करता था.. अब लगता है.. क्यों
मेरा इनसे सम्बन्ध है?
पहले ये बहुत करीब थे.. अब ये करीब होके भी
बहुत दूर
पहले ये साधक थे.. अब बाधक हैं
पहले ये मेरे थे.. अब पराये हैं।